डिटर्जेंट (Detergent) का विकास कैसे हुआ।

 डिटर्जेंट (Detergent) का विकास एक वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रक्रिया का परिणाम है, जो 20वीं सदी में मुख्य रूप से हुआ। इसका इतिहास साबुन (Soap) से जुड़ा हुआ है, क्योंकि डिटर्जेंट की खोज की प्रेरणा साबुन की सीमाओं से ही मिली थी।




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🧼 साबुन से डिटर्जेंट तक का सफर:


1. प्राचीन काल में साबुन:


सबसे पहले साबुन का उपयोग लगभग 2800 ईसा पूर्व में बेबीलोन में हुआ था।


यह जानवरों की चर्बी (fat) और राख (ash) से बनाया जाता था।



2. साबुन की सीमाएँ:


साबुन कठोर पानी (Hard Water) में अच्छे से काम नहीं करता था।


इससे कपड़ों पर साबुन की झिल्ली (soap scum) जम जाती थी।


🧪 डिटर्जेंट का आविष्कार और विकास:


3. प्रारंभिक सिंथेटिक डिटर्जेंट – 1916:


प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में सिंथेटिक डिटर्जेंट का विकास हुआ क्योंकि वहाँ तेल और चर्बी की कमी थी।


इन डिटर्जेंटों को सिंथेटिक साबुन (synthetic soap) कहा गया।



4. व्यावसायिक उत्पादन – 1930s में:


अमेरिका और यूरोप में कंपनियों ने पेट्रोलियम उत्पादों से डिटर्जेंट बनाना शुरू किया।


Procter & Gamble, Henkel जैसी कंपनियों ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई।



5. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद – 1940s–1950s:


युद्ध के बाद डिटर्जेंट का उत्पादन बढ़ा।


नए डिटर्जेंट विशेष रूप से कपड़े धोने, डिश वॉशिंग, और सफाई के लिए बनाए गए।



🧴 आधुनिक डिटर्जेंट की विशेषताएँ:


सर्फेक्टेंट (Surfactants): पानी और तेल को मिलाकर गंदगी हटाते हैं।


एंजाइम्स: दाग को तोड़ते हैं (खून, पसीना, तेल आदि)।


ब्लीचिंग एजेंट्स, फ्रैग्रेंस, और फॉस्फेट्स भी मिलाए जाते हैं।



🌱 पर्यावरण और आधुनिक डिटर्जेंट:


1970 के दशक में फॉस्फेट्स के कारण जल प्रदूषण की चिंता बढ़ी।


आजकल बायोडिग्रेडेबल डिटर्जेंट, इको-फ्रेंडली विकल्प उपलब्ध हैं।




डिटर्जेंट का विकास साबुन की सीमाओं, वैज्ञानिक अनुसंधान, और औद्योगिक ज़रूरतों के कारण हुआ। आज यह घर, उद्योग, और अस्पतालों में सफाई का अहम हिस्सा बन गया है।


अगर आप इसके भारतीय परिप्रेक्ष्य या डिटर्जेंट ब्रांड्स के विकास के बारे में जानना चाहते हैं, तो बताइए — मैं विस्तार से बताऊंगा।


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